विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!- तिलक
Wednesday, August 31, 2011
आज का सत्य व धर्म युद्ध !
आज का सत्य व धर्म युद्ध !
- तिलक, संपादक युग दर्पण 9911111611कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका,
विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!- तिलक
हम उधर हाथ बढ़ाते हैं,
जिसे पाना सरल हो,
फिर चाहे वो गरल हो,
हमारी आकांक्षा रहती है
वही पाने की,
जिसे पाना सरल नहीं होता;
क्योंकि जो सहज सुलभ होता है
वह आकांक्षा नहीं जगाता,
वह विनीत होता है;
विनय को कौन सुनता है
शक्ति की सदा पूजा होती है,
चाहे वो शक्ति सत्ता की हो,
भुज बल, धन बल अथवा हो जन बल की,
जब सत्ता निरंकुश हो जाये अधर्म कहलाता है,
उस पर अंकुश धर्म,
सत्ता उस अंकुश को माने तो धर्म सत्ता,
न माने तो
धर्म व न्याय की रक्षा में होता है
धर्म युद्ध.
विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!- तिलक
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