भड़काऊ कपड़ों में मंदिर प्रवेश वर्जित

तमिलनाडु के मंदिरों में जनवरी से श्रद्धालू - परिधान 
युदस 
31 दिसं 15 मदुरै 


वाराणसी के काशी विश्वनाथ दर्शन के लिए साड़ी पहनना पहले ही अनिवार्य है।  यह नियम विदेशी महिलाओं पर भी लागू है। मंदिर में प्रवेश के लिए ड्रेसकोड 'वेश मानक' लागू कर दिया गया है। 
मंदिर प्रशासन की ओर से यह कदम विदेशी सैलानियों के कम कपड़ों में मंदिर में आने के चलते उठाया गया है।  इसके तहत सुरक्षाकर्मियों को कड़ाई से निगरानी रखने को कहा गया है। 
मंदिर प्रशासन ने भड़काऊ कपड़े पहनकर मंदिर में घुसने पर पाबंदी लगा दी है। 
तमिलनाडु में विभिन्न मंदिरों में दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालुओं को एक जनवरी से नए 'वेश मानक' का पालन करना होगा। तमिलनाडू मंदिर प्रवेश अधिनियम की धारा 4, व अधिकारियों के अनुसार इस संबंध में कई तीर्थस्थलों के सूचना पट्ट पर चिपकाई गई सूचना है कि इस माह के आरम्भ में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों का पालन करते हुए, मंदिरों ने इस ड्रेस कोड 'वेश मानक' को लागू किया है। पलानी मंदिर के बाहर लगी सूचना के अनुसार पुरूष श्रद्धालुओं को धोती, शर्ट, पायजामा या पैंट-शर्ट पहनने का सुझाव दिया गया है जबकि महिला श्रद्धालुओं से साड़ी या चूड़ीदार या ‘आधी साड़ी’ के साथ ‘पावाडई’ पहनने का आग्रह किया गया है।
इसमें बताया गया है कि जो श्रद्धालु लुंगी, बरमुडा, जींस और कसी हुई लैगिंग्स पहनकर आएंगे उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि अन्य मुख्य मंदिरों ने इस संबंध में सूचना जारी की है। इनमें रामेश्वरम और मीनाक्षी मंदिर भी शामिल हैं। मद्रास उच्च न्यायालय ने एक दिसंबर को अपने निर्णय में राज्य सरकार और हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ धर्मादा विभाग को आदेश दिया था कि वह मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 'वेश मानक' लागू करें, ताकि मंदिरों में आध्यात्मिक वातावरण को बढ़ाया जा सके। 

एक याचिका का निपटारा करते हुए न्यायाधीश एस. विद्यानाथन ने कहा था, ‘‘सार्वजनिक पूजा के लिए कोई परिधान होना चाहिए और सामान्यत: यह उपयुक्त ही जान पड़ता है।’’ उन्होंने कहा कि विभाग को मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए 'वेश मानक' लागू करने के लिए विचार करना चाहिए। महिला और पुरूषों के साथ ही उन्होंने बच्चों के लिए भी 'वेश मानक' के तहत पूरी तरह से ढंके हुए वस्त्र पहनने का सुझाव दिया था।

कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका;
विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक 

Comments