प्रकाशपर्व की बधाइयाँ

गुरुनानक जयंती पर विशेष 
जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल 
132235549अखिल विश्व में बसे गुरुसिख, उनके दिल बसे नानक देव। सभी को प्रकाशपर्व की कोटि कोटि बधाइयाँ, शुभकामनाये, -तिलक समस्त युगदर्पण मीडिया परिवार YDMS
गुरपूरब के पवित्र दिन का महत्व - इसे प्रकाश उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र दिन केशधारी व सेहजधारी गुरु ग्रन्थ साहब की वाणी का अमृत, तथा कीर्तन अरदास करते हैं। इसके पूर्व प्रभात फेरियाँ निकली जाती हैं। गुरुद्वारों में अखंड लंगर तो एक पहचान ही है।
gurunanakगुरु नानक: सिख के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं। से मोक्ष तक पहुँचने के एक नए सरल मार्ग का अवतरण होता है।  जिससे सहज ही मोक्ष तक या ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व आदिकाल से ही रहा है। संत कबीर ने कहा था कि गुरु बिन ज्ञान न होए। तब फिर अधिक सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है, बस गुरु के प्रति समर्पण कर दो। फिर हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य और  सुख-दु:ख गुरु ही साधे। अन्यथा भटक जाओगे। अहंकार से किसी ने कुछ नहीं पाया। सिर और चप्पलों को बाहर ही छोड़कर, बस श्रद्धा से गुरु के द्वार खड़े हो जाओ। गुरु को ही करने दो हमारी चिंता।
जीवन कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को राएभोए के तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर गुरु नानक का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता था। तलवंडी को ही अब नानक के नाम पर, ननकाना साहब कहा जाता है, जो पाकिस्तान में है।
माना जाता है कि 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र भी उन्हें हुए। 1507 में वे अपने परिवार का भार, अपने श्वसुर पर छोड़कर यात्रा के लिए निकल पड़े। 1521 तक उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के प्रमुख स्थानों का भ्रमण किया। कहते हैं कि उन्होंने चारों दिशाओं में भ्रमण किया था। लगभग पूरे विश्व में भ्रमण के मध्य नानकदेव के साथ अनेक रोचक घटनाएँ घटित हुईं। 1539 में उन्होंने देह त्याग दी।
नाम धरियो हिंदुस्तान : कहते हैं कि नानकदेवजी से ही हिंदुस्तान को प्रथम बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा इस देश पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे, तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था। -
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका;
विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक

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